पाक सेनाध्यक्ष की डिप्लोमैटिक बाज़ी: ट्रंप को नोबेल दिलाने की कवायद, मोदी का करारा जवाब

नोबेल की राजनीति: ट्रंप को शांति दूत बताकर पाकिस्तान की कूटनीतिक चाल

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वॉशिंगटन/इस्लामाबाद/नई दिल्ली। दुनिया के सबसे संवेदनशील इलाकों में से एक – भारत और पाकिस्तान के बीच के रिश्तों को लेकर एक नया कूटनीतिक अध्याय खुला है। इस बार मुख्य किरदार हैं – पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। हाल ही में अमेरिका की आधिकारिक यात्रा पर पहुँचे जनरल असीम मुनीर ने ऐसा बयान दिया है, जिसने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचा दी है। उन्होंने ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार दिए जाने की मांग की है। उनका तर्क है कि ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान के बीच संभावित युद्ध को रोककर शांति कायम की, और इसी के लिए वे इस पुरस्कार के हकदार हैं।

नोबेल की पैरवी और एक दोपहर का भोज
यह बयान तब आया जब मुनीर को व्हाइट हाउस में ट्रंप के साथ दोपहर के भोजन पर आमंत्रित किया गया। यह निमंत्रण अपने आप में एक प्रतीक माना जा रहा है, क्योंकि पाकिस्तानी सेना प्रमुखों को सीधे व्हाइट हाउस आमंत्रित किया जाना बेहद दुर्लभ है। इतिहास में अयूब खान, जिया-उल-हक और परवेज़ मुशर्रफ़ जैसे सैन्य शासकों को यह सम्मान तब मिला जब वे राष्ट्रपति भी थे। लेकिन मुनीर, एक सेवारत सैन्य अधिकारी के रूप में यह विशेषाधिकार प्राप्त करने वाले गिने-चुने चेहरों में शामिल हो गए हैं। पाकिस्तान सरकार इस भोज को अपनी कूटनीतिक जीत के तौर पर प्रचारित कर रही है। वहीं, व्हाइट हाउस की प्रवक्ता अन्ना केली ने पुष्टि की कि ट्रंप, जनरल मुनीर की मेजबानी इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने भारत-पाक तनाव को शांत करने में अमेरिकी नेतृत्व की भूमिका को रेखांकित करते हुए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए प्रस्तावित किया है।

मोदी का दो-टूक रुख: ‘भारत किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता नहीं स्वीकार करता’
इस घटनाक्रम के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रुख बिल्कुल स्पष्ट रहा। हाल ही में ट्रंप के साथ फोन पर बातचीत में उन्होंने कहा कि भारत-पाकिस्तान के द्विपक्षीय मसलों में अमेरिका या किसी तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं हो सकती। मोदी ने कहा कि भारत सदा से इस नीति का पालन करता आया है कि कोई भी विवाद केवल आपसी बातचीत और द्विपक्षीय तरीके से ही सुलझाया जाएगा। मोदी ने न सिर्फ ट्रंप की कथित ‘मध्यस्थता’ को नकारा, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि भारत अपनी संप्रभुता से कोई समझौता नहीं करेगा।

ट्रंप के दावे: “मैंने युद्ध रुकवाया”
मोदी से बातचीत के कुछ ही घंटों बाद ट्रंप ने मीडिया के सामने एक बार फिर दावा किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध को टाल दिया। पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा – “मैंने दोनों देशों के बीच टकराव को रोका। मैं पाकिस्तान को पसंद करता हूं, और मोदी एक शानदार व्यक्ति हैं। हमने भारत के साथ व्यापार समझौते की बात की, लेकिन सबसे अहम बात यह है कि युद्ध नहीं हुआ।” ट्रंप ने बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया कि दोनों देश परमाणु संपन्न हैं, और अगर युद्ध होता तो इसके विनाशकारी परिणाम होते। उन्होंने खुद को इस टकराव को रोकने वाला “नायक” बताया।

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पाकिस्तानी जनरल की अमेरिका में रणनीति
जनरल मुनीर ने अपनी यात्रा के दौरान अमेरिकी प्रशासन के सामने कई मुद्दे उठाए। उन्होंने यह भी दावा किया कि भारत क्षेत्रीय प्रभुत्व थोपने की कोशिश कर रहा है, और अमेरिका को इस पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने यह भी अपील की कि भारत को पाकिस्तान के साथ एक “सभ्य राष्ट्र” की तरह व्यवहार करना चाहिए। मुनीर हाल ही में पाकिस्तान सरकार द्वारा “फील्ड मार्शल” रैंक पर पदोन्नत किए गए हैं – यह सम्मान उन्हें अयूब खान के बाद पहली बार किसी सेनाध्यक्ष को मिला है। इस नई पदवी के साथ वे अब पाकिस्तान के सबसे प्रभावशाली सैन्य नेता बन गए हैं, और उनकी यह अमेरिका यात्रा इसी शक्ति संतुलन का प्रदर्शन मानी जा रही है।

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राजनीतिक समीकरणों की नई बिसात
इस पूरे घटनाक्रम में पाकिस्तान ने एक बार फिर सेना को कूटनीति की अगली पंक्ति में खड़ा कर दिया है। अमेरिका के साथ संबंधों को मजबूत करने और भारत पर दबाव बनाने की यह कोशिश, एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा दिखती है। वहीं भारत ने बिना किसी हिचक के यह जता दिया है कि वह आत्मनिर्भर है और किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करेगा।

शांति का मंच या राजनीति का नया नाटक?
ट्रंप को नोबेल दिलाने की मांग, मुनीर की अमेरिका यात्रा, मोदी का स्पष्ट रुख – ये सब घटनाएं मिलकर दक्षिण एशिया की राजनीति में एक नया आयाम जोड़ती हैं। जहां एक ओर पाकिस्तान अमेरिका के कंधे पर बंदूक रखकर भारत पर दबाव बनाना चाहता है, वहीं भारत आत्मविश्वास के साथ वैश्विक मंच पर अपनी स्वतंत्र नीति को रेखांकित कर रहा है।
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