दुनिया की सबसे खतरनाक जंग के मुहाने पर खड़ा मध्य-पूर्व, अमेरिका का ‘बंकर बस्टर’ बना निर्णायक अस्त्र

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FILE – In this photo released by the U.S. Air Force on May 2, 2023, airmen look at a GBU-57, or the Massive Ordnance Penetrator bomb, at Whiteman Air Base in Missouri.(U.S. Air Force via AP, File)

Israel Iran War Inside Story: मध्य-पूर्व में एक बार फिर ऐसा धमाका हुआ है जिसने सिर्फ रेगिस्तान नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति की बुनियादें हिला दी हैं। इज़रायल और ईरान के बीच छिड़ी जंग ने दुनिया को उसी मोड़ पर ला खड़ा किया है जहाँ से तीसरे विश्व युद्ध की आहट साफ़ सुनाई देने लगी है। लेकिन इस युद्ध में असली टकराव केवल हथियारों का नहीं, बल्कि रणनीति, तकनीक और ‘बंकर वारफेयर’ का है। और इसी कहानी का केंद्र बन चुका है — ईरान का भूमिगत फोर्डो न्यूक्लियर प्लांट और अयातुल्ला खामेनेई का रहस्यमयी बंकर।

 इज़रायल की शुरुआती सैन्य कार्रवाई और ईरानी प्रतिरोध
12 जून को इज़रायली सेना ने ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों पर लक्षित हमले शुरू किए। ड्रोन, क्रूज़ मिसाइलें और साइबर वारफेयर की मदद से किए गए इन हमलों में कई सतह से ऊपर स्थित परमाणु केंद्रों को नुकसान पहुंचा। लेकिन ईरान का सबसे रहस्यमय और सुरक्षित न्यूक्लियर बेस – फोर्डो – इस हमले से बच गया। फोर्डो, जो तेहरान से सैकड़ों किलोमीटर दूर एक पर्वत श्रृंखला के भीतर, लगभग 300 फीट गहराई में स्थित है, सामान्य मिसाइलों और बमों से अजेय माना जाता है। यह वही जगह है जो ईरान के यूरेनियम संवर्धन प्रोग्राम का मुख्य केंद्र है। और यही वजह है कि इस ठिकाने को तबाह करने के लिए इज़रायल को अकेले नहीं, बल्कि अमेरिका जैसे सैन्य महाशक्ति की मदद की ज़रूरत है।

 अमेरिका का ‘बंकर बस्टर’: जंग का गेमचेंजर?
फोर्डो जैसे लक्ष्य को ध्वस्त करने के लिए सामान्य हथियारों से काम नहीं चलेगा। इसके लिए जरूरी है GBU-57A/B Massive Ordnance Penetrator — एक ऐसा बम जिसे ‘बंकर बस्टर’ कहा जाता है। इस हथियार का वजन लगभग 13,600 किलो है और यह 200 फीट तक ज़मीन में घुसकर विस्फोट कर सकता है। यह बम केवल अमेरिका के पास है और इसे अमेरिका के B-2 स्टील्थ बॉम्बर से गिराया जाता है। यह तकनीक इतनी संवेदनशील और शक्तिशाली है कि दुनिया के किसी भी देश को इसे अमेरिका से उधार लेना पड़ता है — यहाँ तक कि इज़रायल को भी। संकेत मिल रहे हैं कि अमेरिका ने डिएगो गार्सिया द्वीप स्थित संयुक्त सैन्य ठिकाने से B-2 विमान तैनात कर दिए हैं। यानी अमेरिका युद्ध में अब एक परोक्ष खिलाड़ी नहीं, बल्कि निर्णायक भूमिका में है। जब इज़रायली हमले तेज़ हुए, तो ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई अपने परिवार समेत एक अज्ञात बंकर में शिफ्ट हो गए। यह बंकर कहाँ है? इसके ठिकाने की कोई पुख्ता जानकारी दुनिया के किसी खुफिया एजेंसी के पास नहीं है — सिवाय अमेरिका के। इज़रायल ने साफ़ कह दिया है कि जब तक खामेनेई का शासन खत्म नहीं होता, युद्ध समाप्त नहीं होगा। इज़रायल ने तो यहाँ तक संकेत दे दिए हैं कि खामेनेई को सद्दाम हुसैन जैसा अंजाम देने की योजना है। लेकिन इस बंकर तक पहुंचना और उसे निशाना बनाना केवल अमेरिका की टेक्नोलॉजी और सैटेलाइट इंटेलिजेंस से ही मुमकिन है।

 रूस और चीन की चुप्पी, लेकिन इरादे स्पष्ट
जहां अमेरिका खुलेआम इज़रायल को समर्थन दे रहा है, वहीं रूस और चीन ने भले ही औपचारिक युद्ध में प्रवेश न किया हो, लेकिन उनके बयानों और ईरान को भेजी जा रही गुप्त सैन्य मदद को देखकर स्थिति साफ़ है। रूस पहले ही सीरिया के जरिए ईरान को कुछ उन्नत हथियार प्रणालियाँ मुहैया करा चुका है और चीन, जिसने हाल ही में ईरान के साथ व्यापारिक व सामरिक समझौते किए हैं, पश्चिम को सीधी चेतावनी दे चुका है।

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 अमेरिका का हमला 15 दिन के लिए टला, लेकिन क्यों?
सूत्रों के मुताबिक, अमेरिका ने ईरान पर सीधा हमला करने की योजना को फिलहाल 15 दिनों के लिए स्थगित कर दिया है। इसका एक कारण अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और संयुक्त राष्ट्र की संभावित मध्यस्थता भी है। साथ ही अमेरिका को डर है कि सीधा हमला रूस और चीन को मजबूर कर देगा कि वे युद्ध में खुलकर कूदें। लेकिन दूसरी ओर, अमेरिकी रक्षा विभाग ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि इज़रायल को समर्थन देने के लिए सीधा सैन्य हस्तक्षेप करना पड़े, तो अमेरिका पूरी ताकत से मैदान में उतरेगा। ईरान और इज़रायल की यह जंग केवल मिसाइलों या बंकरों की नहीं है। यह उस नाजुक संतुलन की परीक्षा है, जिस पर आज की वैश्विक व्यवस्था टिकी हुई है। एक तरफ ईरान है जो समर्पण नहीं करना चाहता, दूसरी तरफ इज़रायल है जो हर कीमत पर खामेनेई शासन का अंत चाहता है, और तीसरी तरफ अमेरिका, जो तय कर चुका है कि अगर ज़रूरत पड़ी तो वह दुनिया का सबसे बड़ा बम भी इस्तेमाल करेगा। यह जंग कब और कैसे खत्म होगी, इसका जवाब अभी भविष्य के गर्भ में है। लेकिन इतना तय है कि अगर अगला कदम सोच-समझकर नहीं उठाया गया, तो यह संघर्ष पूरी दुनिया को एक ऐसी आग में झोंक सकता है जहाँ न तो कोई विजेता होगा और न कोई सुरक्षित कोना।
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