ईरान-इज़राइल युद्ध: शी जिनपिंग का बड़ा बयान, चीन ने दी सख्त चेतावनी


मिडिल ईस्ट की बारूदी ज़मीन पर चीन की शांति की पुकार

अस्ताना (17 जून 2025) — पश्चिम एशिया एक बार फिर संकट के कगार पर खड़ा है। पांच दिनों से जारी ईरान और इज़राइल के बीच खूनी टकराव अब वैश्विक चिंताओं का विषय बन चुका है। दोनों देशों की ओर से हो रहे मिसाइल और ड्रोन हमलों ने न केवल आम नागरिकों की जान जोखिम में डाली है, बल्कि पूरे मिडिल ईस्ट को युद्ध की आग में झोंकने की कगार पर ला दिया है। इस तीव्र होते टकराव पर मंगलवार को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चुप्पी तोड़ते हुए एक महत्वपूर्ण और सधे हुए बयान में युद्ध के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया।

चीनी राष्ट्रपति की पहली प्रतिक्रिया – ‘स्थिति बेहद गंभीर है’
चीनी सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के हवाले से जारी बयान में राष्ट्रपति शी ने इस संघर्ष पर चिंता जताते हुए कहा कि “बीजिंग को मिडिल ईस्ट में बढ़ती अस्थिरता से गहरा सरोकार है, खासतौर पर इज़राइल की सैन्य कार्रवाई से उत्पन्न स्थिति को लेकर।” ये बयान उस समय आया जब शी जिनपिंग कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में दूसरे चीन-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे थे। मंच साझा कर रहे थे उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शावकत मिर्जियोयेव, और यहीं से चीन ने अपनी ओर से एक शांतिपूर्ण रुख पेश किया।

‘टकराव नहीं, समाधान की ज़रूरत है’ — चीन की स्पष्ट चेतावनी
शी जिनपिंग ने इस बात पर ज़ोर दिया कि “सभी पक्षों को संयम बरतते हुए स्थिति को और अधिक भड़काने से बचना चाहिए। मिडिल ईस्ट एक संवेदनशील भू-राजनीतिक क्षेत्र है और कोई भी बाहरी हस्तक्षेप या सैन्य दबाव केवल हालात को और बदतर बनाएगा।” उन्होंने दो टूक कहा कि चीन किसी भी ऐसी सैन्य कार्रवाई का विरोध करता है जो किसी राष्ट्र की संप्रभुता, सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता को नुकसान पहुंचाती हो।

‘युद्ध से नहीं, संवाद से निकलेगा रास्ता’
चीन के राष्ट्रपति ने वैश्विक समुदाय को आगाह करते हुए कहा, “सैन्य संघर्ष कभी भी स्थायी समाधान नहीं होते। इस प्रकार की हिंसा न केवल क्षेत्रीय संतुलन को बिगाड़ती है, बल्कि वैश्विक शांति प्रयासों के लिए भी खतरा बनती है।” उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि चीन इस संघर्ष में एक जिम्मेदार राष्ट्र की भूमिका निभाना चाहता है और वो मिडिल ईस्ट में शांति और स्थिरता बहाल करने के लिए सभी पक्षों के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार है।

ईरान-इज़राइल संघर्ष: दुनिया की नींद क्यों टूटी?
ईरान और इज़राइल के बीच पिछले एक सप्ताह से चल रही झड़पें, अब एक पूर्ण सैन्य संघर्ष में तब्दील होती दिख रही हैं। सीमाओं पर रॉकेट बमबारी, ड्रोन्स के ज़रिए हमले और जवाबी कार्रवाई ने हालात को विस्फोटक बना दिया है। कई शहरों में आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो चुका है और हजारों लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। इस तनाव ने न केवल अरब देशों को चिंता में डाल दिया है, बल्कि अब वैश्विक शक्तियों जैसे रूस, अमेरिका और यूरोपीय संघ की भी नजरें इस पर टिक गई हैं। ऐसे में चीन का बयान उस अंतरराष्ट्रीय दबाव का हिस्सा है जो इस संकट को रोकने के लिए बनता जा रहा है।

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मध्य पूर्व में चीन की भूमिका — केवल व्यापार या शांति रक्षक भी?
एक दशक पहले तक मिडिल ईस्ट में अमेरिका की पकड़ मज़बूत थी, लेकिन अब चीन अपनी भूमिका को केवल व्यापारिक साझेदार से आगे बढ़ाकर कूटनीतिक मध्यस्थ के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। राष्ट्रपति शी का यह बयान इसी दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन अब मिडिल ईस्ट को तेल और व्यापार का केंद्र भर नहीं, बल्कि शांति और संतुलन की प्रयोगशाला के रूप में देख रहा है।

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