राजधानी में फूटा शिक्षा संकट: निजी स्कूलों की मान्यता पर तलवार, हजारों बच्चे और शिक्षक परेशान

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भोपाल, 17 जून 2025 — मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में मंगलवार को एक अभूतपूर्व नज़ारा देखने को मिला, जब हज़ारों की संख्या में निजी स्कूलों के संचालक, शिक्षक, छात्र और उनके अभिभावक राज्य शिक्षा केंद्र के बाहर सड़कों पर उतर आए। नारों, तख्तियों और भावुक अपीलों के साथ किए गए इस प्रदर्शन का मकसद था – सरकार की ‘अस्पष्ट और त्रुटिपूर्ण नीतियों’ के खिलाफ विरोध जताना, जिनके चलते प्रदेश के 8000 से अधिक निजी स्कूलों की मान्यता खतरे में पड़ गई है।

 स्कूल बंद तो भविष्य बंद!
प्रदर्शन कर रहे लोगों की मांग थी कि सरकार तत्काल हस्तक्षेप कर मान्यता प्रक्रिया को दोबारा खोले और तकनीकी व प्रशासनिक खामियों को दूर करे। उनका कहना था कि यदि स्कूलों की मान्यता रद्द हुई, तो न सिर्फ़ लाखों छात्रों की शिक्षा बाधित होगी, बल्कि शिक्षकों का रोजगार भी छिन जाएगा। यह सिर्फ़ कागज़ों की प्रक्रिया नहीं, बल्कि हज़ारों परिवारों की जीविका और बच्चों के भविष्य का प्रश्न है।

 बच्चों की भावुक अपील: “हमारा स्कूल मत बंद करो”
प्रदर्शन के दौरान छोटे-छोटे बच्चे हाथों में पोस्टर लिए हुए दिखाई दिए, जिन पर लिखा था – “हम पढ़ना चाहते हैं”, “स्कूल को बचाओ”, “हमारा भविष्य मत बिगाड़ो।” एक छात्रा की आंखों में आँसू थे जब उसने कहा – “सरकारी स्कूल में हमारी ज़रूरतें पूरी नहीं हो पातीं। हमारे शिक्षक हमें अच्छी तरह समझाते हैं, हम अपने स्कूल से प्यार करते हैं।”

 अभिभावकों का फूटा दर्द
प्रदर्शन में मौजूद एक अभिभावक ने बताया, “हमने अपने बच्चों को कड़ी मेहनत करके अच्छे स्कूलों में दाखिला दिलाया था। लेकिन अब अगर मान्यता रद्द होती है, तो हमें मजबूरी में बच्चों को सरकारी स्कूल में शिफ्ट करना पड़ेगा, जहां संसाधनों की कमी है। इससे बच्चों की पढ़ाई और मानसिक स्थिति दोनों पर असर पड़ेगा।”

 स्कूल संचालकों की कहानी – नियमों की भूलभुलैया
कई स्कूल संचालकों ने बताया कि वे वर्षों से बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे रहे हैं, लेकिन शिक्षा विभाग की प्रक्रियाएं इतनी जटिल हैं कि मान्यता के लिए आवेदन तक करना कठिन हो गया है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि सरकार का पोर्टल अचानक बंद कर दिया गया, जिससे हजारों स्कूलों को आवेदन का मौका ही नहीं मिला।एक संचालक ने बताया, “हम ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं, लेकिन तकनीकी कारणों से हमारे जैसे छोटे स्कूल प्रक्रिया से बाहर हो गए। सरकार को चाहिए कि वो मान्यता प्रक्रिया को सरल बनाए और स्कूलों की बात सुने।”

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 RTE भुगतान: स्कूलों पर बढ़ा आर्थिक संकट
सरकार द्वारा RTE (निःशुल्क शिक्षा अधिकार अधिनियम) के तहत पढ़ने वाले बच्चों की फीस वर्षों से लंबित है। निजी स्कूलों का आरोप है कि उन्हें अब तक करोड़ों रुपये का भुगतान नहीं किया गया है, जिससे वे वित्तीय संकट में हैं। कई स्कूल समय पर शिक्षकों को वेतन देने में असमर्थ हैं, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है।एक संचालक ने बताया, “सरकार हमसे सामाजिक उत्तरदायित्व की अपेक्षा करती है, लेकिन समय पर भुगतान नहीं देती। आखिर हम अपने स्टाफ को कैसे वेतन दें? बिजली बिल, भवन किराया, शिक्षण सामग्री – सब कुछ अटका पड़ा है।”

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सरकारी चुप्पी पर उठे सवाल
इस पूरे घटनाक्रम पर सरकार की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। हालांकि शिक्षा विभाग के कुछ अधिकारियों ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि प्रक्रिया में पारदर्शिता और नियमों का पालन सरकार की प्राथमिकता है। लेकिन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि “पारदर्शिता के नाम पर अनदेखी हो रही है।”

 प्रदर्शनकारियों की प्रमुख मांगें

  1. स्कूल मान्यता पोर्टल दोबारा खोला जाए, जिससे सभी स्कूल आवेदन कर सकें।
  2. सभी निजी स्कूलों को समान अवसर मिले, कोई भी भेदभाव न हो।
  3. RTE सीटें फिर से बहाल की जाएं और प्रवेश प्रक्रिया स्पष्ट हो।
  4. लंबित फीस भुगतान तत्काल किया जाए, ताकि स्कूल सामान्य संचालन कर सकें।
  5. बिना सूचना के स्कूलों पर कार्रवाई बंद हो, और पूर्व सूचना व स्पष्टीकरण की व्यवस्था हो।
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