सूरत में हाईप्रोफाइल रियल एस्टेट घोटाला: बिना अंतिम अनुमति के बने फ्लैटों पर चला नगर निगम का डंडा, दर्जनों परिवार बेघर होने की कगार पर!

सूरत में एयरपोर्ट क्षेत्र के पास बनीं कासा रिवेरा, KPM टेराप्राइम और सेलेस्टियल ड्रीम्स जैसी लग्जरी इमारतों को बिना BU परमिशन बेच दिया गया। अब निगम ने 151 फ्लैटधारकों को मकान खाली करने के आदेश दिए हैं। पानी-बिजली कनेक्शन भी काटने की चेतावनी दी गई है।

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सूरत शहर के रियल एस्टेट क्षेत्र में एक बार फिर बड़ा विवाद सामने आया है। न्यू सिटीलाइट-केनाल रोड, पाल और वेसु इलाके में बने कई हाईराइज टावर्स—जैसे कासा रिवेरा, KPM टेराप्राइम और सेलेस्टियल ड्रीम्स—को लेकर नगर निगम ने कठोर कदम उठाते हुए फ्लैटधारकों को तत्काल मकान खाली करने का आदेश दे दिया है। इन इमारतों को एयरपोर्ट की सीमित ऊंचाई क्षेत्र (Aerodrome Zone) में निर्माण की अनुमति पूर्व में NOC के आधार पर दी गई थी, लेकिन बाद में एयरपोर्ट अथॉरिटी ने बिल्डिंग की स्थिति पर आपत्ति जताई और स्टेटस-क्वो रिपोर्ट देकर नगर निगम को BU (बिल्डिंग यूसेज) परमिशन रोकने का निर्देश दिया। चौंकाने वाली बात यह है कि बिना BU परमिशन के ही बिल्डरों ने सारे फ्लैट्स बेच दिए, और अब उन बेगुनाह खरीदारों पर उजड़ने का खतरा मंडरा रहा है।

 प्रशासन का डंडा: गैरकानूनी कब्जे वालों को पानी-बिजली से भी किया जाएगा वंचित
नगर निगम का साफ कहना है कि जिन बिल्डिंगों को BU अप्रूवल नहीं मिला है, वहां का रहवासी नियम विरुद्ध है। प्रशासन ने 41 फ्लैटधारकों को नोटिस थमा दिया है और चेतावनी दी है कि यदि उन्होंने घर खाली नहीं किए, तो उनके पानी और ड्रेनेज कनेक्शन काट दिए जाएंगे।

 एयरपोर्ट के आसपास की ऊँची इमारतें अब जांच के घेरे में
यह मामला सिर्फ तीन प्रोजेक्ट्स तक सीमित नहीं है। निगम अब सूरत एयरपोर्ट के आसपास बनी सभी ऊँची इमारतों की जांच कर रहा है, जो कि एयरोड्रम एक्ट और DGCA के नियमों का उल्लंघन करते हुए बनी हैं। पहले चरण में वेसु और पाल क्षेत्र की बिल्डिंगों को नोटिस दिया गया, अब न्यू सिटीलाइट क्षेत्र की भी जांच हो रही है। इससे साफ है कि यह मामला पूरे शहर में बड़ा प्रशासनिक एक्शन बनने जा रहा है।

NOC के नाम पर हुआ खेल? एयरपोर्ट अथॉरिटी ने बाद में बदला रुख
जानकारों की मानें तो शुरुआती स्तर पर बिल्डर्स को एयरपोर्ट अथॉरिटी से NOC मिल गई थी, जिसके आधार पर नगर निगम ने विकास की अनुमति दी। लेकिन जब निर्माण कार्य लगभग पूरा हो गया, तब एयरपोर्ट अथॉरिटी ने स्टेटस क्वो की रिपोर्ट देते हुए कहा कि निर्माण वहीं रोक दिया जाए। इसी आधार पर निगम ने BU देने से मना कर दिया, जबकि उसी रिपोर्ट से पहले फ्लैट्स बिक चुके थे।

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 क्या बिल्डर और प्रशासन की मिलीभगत से हुआ खेल?
इस पूरे मामले में बड़ा सवाल उठ रहा है—क्या बिल्डर और प्रशासन के कुछ अफसरों की मिलीभगत से फ्लैट्स बिना अंतिम मंजूरी के बेच दिए गए? आम जनता जो जीवन भर की पूंजी लगाकर घर खरीदती है, अब वह खुद को ठगा सा महसूस कर रही है। कई परिवारों ने तो लोन लेकर ये फ्लैट्स खरीदे थे, अब वे आर्थिक और मानसिक रूप से टूट चुके हैं।

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 पीड़ितों की पुकार: “हमने अपराध नहीं किया, फिर क्यों भुगतें सजा?”
नोटिस पाने वाले फ्लैटधारकों का कहना है कि वे किसी भी गैरकानूनी प्रक्रिया में शामिल नहीं थे। उन्हें तो बिल्डर ने सभी जरूरी कागज़ात दिखाए थे। अगर अनुमति नहीं थी तो रजिस्ट्रेशन कैसे हुआ? अब जबकि वे फ्लैट्स में रहने लगे हैं, प्रशासन सीधे उन्हें बेघर करने पर उतारू है।

  •  अब क्या होगा आगे?
    बिल्डिंग्स का भविष्य कोर्ट के आदेश पर निर्भर है।
  • कुछ फ्लैट मालिकों ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने की तैयारी शुरू कर दी है।
  • निगम का कहना है कि सुरक्षा नियमों का उल्लंघन नहीं होने देंगे।
  • बिल्डर्स से जवाब-तलब की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।

सूरत जैसे स्मार्ट सिटी के सपनों में अगर इस तरह आम नागरिकों के साथ धोखा होता रहा, तो रियल एस्टेट पर लोगों का विश्वास डगमगा जाएगा। यह केस एक बड़ा उदाहरण बन सकता है कि कैसे बिना उचित अनुमति के बनाई गई इमारतें, अंततः आम जनता के लिए विनाशकारी साबित होती हैं। जरूरत है कि दोषियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही हो और पीड़ितों को न्याय मिले।
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