रोबोट रहेंगे, इंसान नहीं! AI युग में वीरान हो जाएंगे शहर ? 2300 तक सिर्फ 10 करोड़ लोग बचेंगे!

ओक्लाहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सुभाष काक ने दावा किया है कि अगर AI ऐसे ही आगे बढ़ता रहा, तो वर्ष 2300 तक धरती पर केवल 10 करोड़ लोग ही बचेंगे। बढ़ती ऑटोमेशन और घटती जनसंख्या दर मानव सभ्यता के अस्तित्व पर गंभीर संकट बन सकती है।

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Robots will remain, not humans! Will cities become deserted in the AI ​​era? Only 10 crore people will survive by 2300!
AI का अंधेरा भविष्य: क्या रोबोटिक क्रांति इंसानों को समाप्त कर देगी?

दुनिया जिस तकनीकी युग में प्रवेश कर चुकी है, उसमें संभावनाएं जितनी रोमांचक हैं, उतने ही गहरे खतरे भी छिपे हैं। अब चिंता केवल नौकरी जाने तक सीमित नहीं रही, बल्कि भविष्य में इंसान की प्रजाति के अस्तित्व पर भी सवाल उठने लगे हैं। ओक्लाहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी के कंप्यूटर साइंस प्रोफेसर डॉ. सुभाष काक ने हाल ही में एक ऐसा दावा किया है जिसने वैश्विक बहस को हवा दे दी है। उनका मानना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का अत्यधिक विस्तार मानव सभ्यता को धीरे-धीरे विलुप्ति की ओर ले जा सकता है।

2300 तक केवल 10 करोड़ इंसान?
प्रोफेसर काक का कहना है कि अगर वर्तमान ट्रेंड यूं ही चलता रहा, तो साल 2300 तक पृथ्वी की आबादी घटकर केवल 10 करोड़ रह जाएगी—जो कि आज के यूनाइटेड किंगडम की जनसंख्या के बराबर है। इसका सीधा अर्थ है कि कई बड़े देश, महानगर और सभ्यताएं केवल इतिहास का हिस्सा बन जाएंगी। उनका यह दावा सिर्फ एक अनुमान नहीं बल्कि वैज्ञानिक, सामाजिक और आर्थिक आधारों पर टिका हुआ विश्लेषण है।

AI क्यों बन सकता है मानव जनसंख्या में गिरावट का कारण?
AI के प्रभाव से जिस तरह कामकाज ऑटोमेट हो रहे हैं, उससे कंपनियों को इंसानों की ज़रूरत लगातार घट रही है। बैंकिंग, हेल्थकेयर, मैन्युफैक्चरिंग, मीडिया, लॉ और यहां तक कि रचनात्मक क्षेत्रों में भी रोबोट और एल्गोरिद्म इंसानों की जगह ले रहे हैं। काक बताते हैं कि जैसे-जैसे AI जीवन के हर क्षेत्र में घुसपैठ करता जाएगा, वैसे-वैसे “फैमिली की ज़रूरत” और “विवाह जैसे संस्थानों” की अहमियत भी लोगों की नज़रों में कम होती जाएगी। जब रोबोट काम करने लगेंगे, तो लोग शादियां करने या परिवार बढ़ाने के लिए प्रेरित ही नहीं होंगे।

पहले से गिर रही है जनसंख्या: चेतावनी के संकेत?
प्रोफेसर काक ने इस गंभीर खतरे की ओर इशारा किया कि विश्व के कई विकसित देश पहले से ही इस समस्या से जूझ रहे हैं।

  • जापान में बुज़ुर्गों की संख्या युवाओं से अधिक हो चुकी है।
  • दक्षिण कोरिया में बर्थ रेट दुनिया में सबसे नीचे पहुंच चुका है।
  • चीन अपनी दशकों पुरानी “वन चाइल्ड पॉलिसी” के प्रभाव से अब जनसंख्या संकट की कगार पर है।
  • यूरोप के कई देशों में जनसंख्या स्थिर या घट रही है।
  • यह सब कुछ संकेत हैं कि आने वाले समय में AI केवल तकनीकी बदलाव नहीं बल्कि सामाजिक संरचना को भी हिला सकता है।

2030-2050 नहीं, असली खतरा 2300 में!
बड़ी संख्या में विशेषज्ञ और उद्योग जगत के लोग 2030 या 2050 तक AI से जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा करते हैं, लेकिन काक का मानना है कि असली संकट उससे कहीं आगे छिपा है—साल 2300 में, जब मानव सभ्यता का चेहरा ही बदल सकता है। उन्होंने कहा, “हम सोचते हैं कि AI हमारी सहायता करेगा, लेकिन हम इस बात से अंजान हैं कि यह धीरे-धीरे हमें अप्रासंगिक बना देगा।”

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भविष्य के शहर: मशीनों के गढ़, इंसानों के बिना?
काक का यह भी दावा है कि जब आबादी 10 करोड़ तक सिमट जाएगी, तब न्यूयॉर्क, लंदन, टोक्यो जैसे शहर वीरान हो जाएंगे। ये शहर केवल मशीनों, मेटल और डेटा सर्वरों से भरे होंगे। इमारतें होंगी, तकनीक होगी, लेकिन उनमें जीवन नहीं होगा। AI आधारित रोबोट्स उन शहरों को ऑपरेट करेंगे, जो कभी मानव गतिविधियों से गुलजार थे। यह दृश्य किसी साइंस फिक्शन फिल्म जैसा लगता है, लेकिन वैज्ञानिक चेतावनियों को देखते हुए इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

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एलन मस्क की चेतावनी फिर बनी चर्चा का विषय
प्रोफेसर काक ने टेस्ला और स्पेसएक्स के CEO एलन मस्क का हवाला भी दिया। मस्क पहले ही कह चुके हैं कि गिरती जन्म दर मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा है। यही वजह है कि वह मंगल ग्रह पर कॉलोनी बसाने की बात करते हैं—मानवता को बचाने के लिए एक नया ठिकाना खोजने की कोशिश।

क्या कोई समाधान है?
इस संकट को देखते हुए सवाल उठता है—क्या हम कुछ कर सकते हैं?

  • शिक्षा और सामाजिक प्रोत्साहनों के माध्यम से युवा पीढ़ी को परिवार और बच्चों की जिम्मेदारी के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
  • टेक्नोलॉजी और इंसान के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए वैश्विक स्तर पर नीतियां बनाई जानी चाहिए।
  • AI की सीमाएं तय करनी होंगी और उसका प्रयोग केवल सहायता तक सीमित रखना होगा, प्रतिस्थापन तक नहीं।

AI का विकास अवश्य ही मानव इतिहास का एक क्रांतिकारी अध्याय है, लेकिन इसका अंधा विस्तार कहीं पूरी कहानी का अंत न बन जाए। प्रोफेसर सुभाष काक की चेतावनी महज़ एक भविष्यवाणी नहीं, बल्कि एक गंभीर संकेत है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। अभी भी समय है—इंसान, इंसानियत और तकनीक के बीच संतुलन स्थापित करने का।
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