तेजस्वी यादव का बड़ा आरोप: “बिहार सरकार पर आरएसएस का नियंत्रण, नीतीश कुमार महज़ चेहरा हैं”

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बिहार की राजनीति एक बार फिर उस मुकाम पर पहुँच चुकी है जहाँ सत्ता और विपक्ष के बीच टकराव चरम पर है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर ऐसा राजनीतिक प्रहार किया है, जो न सिर्फ सत्ताधारी गठबंधन के लिए असहज है, बल्कि बिहार की नौकरशाही में हो रही अंदरूनी उठापटक पर भी सवाल खड़े करता है। तेजस्वी ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘एक्स’ पर एक वीडियो साझा करते हुए सीधे मुख्यमंत्री की कार्यशैली और उनके निर्णयों के पीछे मौजूद शक्तियों पर निशाना साधा। वीडियो में राज्य सरकार के मंत्री अशोक चौधरी यह स्वीकार करते सुनाई दे रहे हैं कि एक वरिष्ठ अधिकारी “आरएसएस कोटे” से नियुक्त किए गए हैं।
‘𝐑𝐒𝐒-𝐁𝐉𝐏 के हाथ में है नीतीश की लगाम’
नीतीश कुमार की लगाम 𝐑𝐒𝐒-𝐁𝐉𝐏 के हाथ में है। 𝐑𝐒𝐒 की ही नीतियों और निर्णयों पर नीतीश सरकार चल रही है हमारी इस बात को नीतीश कुमार की किचन कैबिनेट के मंत्री ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर उस पर मुहर लगा दी है। अब तो 𝐂𝐌𝐎 में भी 𝐑𝐒𝐒 कोटा से अधिकारियों का पदस्थापन हो चुका… pic.twitter.com/zq4ordm420
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) June 18, 2025
“नीतीश सरकार का असली संचालन आरएसएस के इशारों पर”: तेजस्वी का दावा
वीडियो के साथ साझा अपने पोस्ट में तेजस्वी ने तीखा आरोप लगाते हुए लिखा – “नीतीश कुमार की सरकार अब पूरी तरह आरएसएस और भाजपा के निर्देशों पर चल रही है। हमारी बातों को अब नीतीश की कैबिनेट में शामिल मंत्री ने ही प्रमाणित कर दिया है। यह सिर्फ़ सरकार नहीं, एक नियंत्रित कठपुतली तंत्र है, जिसमें फैसले संघ के दफ्तरों में होते हैं और घोषणाएं सचिवालय से।” उन्होंने यह भी लिखा कि अब मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) में भी ऐसे अधिकारियों की नियुक्ति हो चुकी है जिनकी पृष्ठभूमि संघ से जुड़ी हुई है। तेजस्वी का आरोप था कि यह सिर्फ प्रशासनिक हस्तक्षेप नहीं, बल्कि लोकतंत्र के मूल ढांचे पर सीधा हमला है।
दलित-पिछड़ों और मुसलमानों पर ‘संघ की चाल’?
तेजस्वी ने इस वीडियो को बहस का आधार बनाते हुए बिहार में सामाजिक न्याय की स्थिति पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने लिखा – “बिहार में दलितों, पिछड़ों, अतिपिछड़ों और मुस्लिम समुदाय के अधिकारों को लगातार कुचला जा रहा है। 65% आरक्षण को रोकने की कवायद हो, नौकरियों में आरक्षित वर्गों की उपेक्षा हो, या फिर प्रशासनिक पदों पर वंचित वर्ग के अधिकारियों को दरकिनार करना – यह सब संघ की रणनीति के तहत हो रहा है।”तेजस्वी ने आगे लिखा कि ऐसी नीतियों से न केवल सामाजिक न्याय की भावना को ठेस पहुँच रही है, बल्कि राज्य का लोकतांत्रिक ढांचा भी असंतुलन की स्थिति में पहुँच रहा है।
“मुख्यमंत्री मानसिक रूप से सजग नहीं”: व्यक्तिगत हमले भी जारी
तेजस्वी यादव ने अपने बयान में नीतीश कुमार की मानसिक और शारीरिक स्थिति पर भी सवाल उठाए। उन्होंने इशारों-इशारों में कहा कि मुख्यमंत्री अब पहले जैसे नहीं रहे। “अब मुख्यमंत्री की उम्र हो चली है, उनकी निर्णय क्षमता पर सवाल उठना लाज़मी है। कई बार उनकी सार्वजनिक गतिविधियाँ असामान्य रही हैं – जैसे राष्ट्रगान के दौरान हँसना या श्रद्धांजलि सभा में ताली बजाना। इससे स्पष्ट है कि राज्य संचालन की वास्तविक बागडोर किसी और के हाथ में है।” तेजस्वी ने सत्ता की तुलना “भूंजा पार्टी” से करते हुए लिखा कि “अब रिटायर्ड अधिकारियों की एक मंडली ही बिहार को दोनों हाथों से लूट रही है, जबकि मुख्यमंत्री खुद ही अपने कर्तव्यों से अनभिज्ञ हैं।”
क्या यह सिर्फ राजनीतिक बयानबाज़ी है या बिहार प्रशासन का असल चेहरा?
तेजस्वी यादव के ये बयान सिर्फ राजनीतिक कटाक्ष नहीं हैं, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हैं। अगर वाकई सरकार में बाहरी ताकतों का इतना दखल है, तो यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए गंभीर चेतावनी है। दूसरी ओर, सत्तारूढ़ गठबंधन ने तेजस्वी के इन आरोपों को ‘बेबुनियाद और चुनावी रणनीति’ बताया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अशोक चौधरी द्वारा कही गई बातों पर मुख्यमंत्री या जेडीयू की ओर से क्या सफाई दी जाती है। साथ ही, क्या विपक्ष इन मुद्दों को विधानमंडल के पटल पर भी उठाएगा या फिर यह सिर्फ सोशल मीडिया तक ही सीमित रह जाएगा। तेजस्वी यादव का यह हमला केवल व्यक्तिगत या दलगत नहीं है, बल्कि एक बड़े वैचारिक संघर्ष की झलक भी देता है। बिहार की राजनीति में आरक्षण, सामाजिक न्याय और प्रशासनिक संतुलन हमेशा से संवेदनशील मुद्दे रहे हैं। ऐसे में अगर सरकार के भीतर से ही ‘संघ कोटे’ की बात सामने आती है, तो यह सवाल उठाना लाज़मी है – “क्या वाकई बिहार में सरकार नहीं, संघ राज चल रहा है?”
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