राजस्थान का पूर्व पुलिस कमांडो निकला लॉरेंस गैंग का खास गुर्गा, फायरिंग केस में गिरफ़्तार
राजस्थान पुलिस का पूर्व कमांडो प्रवीण कुमार, जो कभी आनंदपाल गैंग का हिस्सा रहा, अब लॉरेंस बिश्नोई गैंग के लिए काम करता है। नौकरी में रहते हुए अपराधियों की मदद करने पर बर्खास्त हुआ। हाल में उसे चूरू में फायरिंग केस में गिरफ्तार किया गया। उस पर ₹25,000 का इनाम घोषित था।

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राजस्थान की अपराध कथा में एक नया अध्याय जुड़ गया है। यह कहानी है एक ऐसे पूर्व पुलिस कमांडो की, जिसने देश की सेवा की शपथ तो ली थी, लेकिन समय के साथ वह अंडरवर्ल्ड के दरवाजे तक जा पहुंचा। चूरू जिले के छोटे से गांव जोड़ी का रहने वाला प्रवीण कुमार कभी राजस्थान पुलिस में कमांडो था, पर आज वह राज्य के सबसे कुख्यात गैंगस्टरों में से एक लॉरेंस बिश्नोई के गैंग का सक्रिय सदस्य बन चुका है।
पुलिस की नौकरी से गैंगस्टर की गली तक
वर्ष 2001 में राजस्थान पुलिस में बतौर कांस्टेबल भर्ती हुआ प्रवीण कुमार जल्द ही अपनी कार्यकुशलता से कमांडो बन गया। झालावाड़ में तैनाती के दौरान उसकी पहचान अपराधियों के साथ होने लगी। पहले उसने आनंदपाल सिंह जैसे कुख्यात गैंगस्टर से संबंध बनाए, और फिर उसकी मौत के बाद लॉरेंस बिश्नोई गैंग का मोहरा बन गया।कमांडो की ट्रेनिंग के बाद उसे अपराधियों की दुनिया में रसूख मिला। उसने न केवल अपराधियों को छुपाने में मदद की, बल्कि कारोबारियों के नंबर गैंग को मुहैया करवाकर फिरौती जैसे गंभीर अपराधों को भी अंजाम दिलवाया।
आनंदपाल की फरारी में था शामिल
राजस्थान की सबसे बड़ी गैंगस्टर घटनाओं में से एक थी आनंदपाल सिंह की पेशी के दौरान फरारी। वर्ष 2015 में जब आनंदपाल पुलिस कस्टडी से फरार हुआ, तब जांच में सामने आया कि उसे भगाने में प्रवीण कुमार का हाथ था। बाद में उसे गिरफ्तार किया गया, लेकिन वर्ष 2017 में आनंदपाल के एनकाउंटर के बाद प्रवीण कुछ साल जेल में रहा और फिर जमानत पर छूट गया। प्रवीण कुमार पुलिस की वर्दी पहनकर ऐसे काम करता रहा जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। उसने कारोबारियों के मोबाइल नंबर लॉरेंस बिश्नोई गैंग को दिए ताकि उनसे फिरौती वसूली जा सके। यह सूचना तंत्र किसी खुफिया एजेंसी की तरह काम करता था, लेकिन गलत दिशा में। जैसे ही यह जानकारी उच्चाधिकारियों को मिली, उसे तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया गया। प्रवीण की आपराधिक यात्रा यहीं नहीं रुकी। अगस्त 2024 में चूरू के होटल सनसिटी पर फायरिंग की घटना हुई। कर्मचारी मंजत अली की रिपोर्ट पर मामला दर्ज हुआ और छानबीन में सामने आया कि इस वारदात में प्रवीण शामिल था। उसकी गिरफ्तारी के लिए राजस्थान पुलिस ने उस पर ₹25,000 का इनाम घोषित किया।
विशेष टीम की घेराबंदी में हुई गिरफ्तारी
चूरू पुलिस ने इस केस को गंभीरता से लेते हुए डीआईजी योगेश यादव और एएसपी सिद्धांत शर्मा के नेतृत्व में इंस्पेक्टर सुभाष सिंह तंवर की अगुवाई में एक विशेष टीम गठित की। टीम में शामिल थे एएसआई शंकर दयाल शर्मा, हेड कांस्टेबल नरेंद्र सिंह, महावीर सिंह, सुरेश, कमल डागर, कांस्टेबल नरेश, रतिराम और चालक सुरेश। टीम ने जान की परवाह किए बिना योजनाबद्ध तरीके से घेराबंदी की और आखिरकार प्रवीण कुमार को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद उसे चूरू पुलिस को सौंप दिया गया। प्रवीण की गिरफ्तारी से पुलिस को कई अहम सुराग मिले हैं। माना जा रहा है कि वह लॉरेंस गैंग के संपर्क सूत्र की तरह काम करता था और राजस्थान, हरियाणा व पंजाब में फैले आपराधिक नेटवर्क के लिए महत्वपूर्ण जानकारी देता था। साथ ही, कई शूटर्स को पनाह देने और हथियारों की सप्लाई में भी उसकी भूमिका जांच के दायरे में है।
एक सिस्टम की चूक या व्यक्तिगत लालच?
प्रवीण कुमार की कहानी केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की खामियों को उजागर करती है। क्या पुलिस बल में ऐसे तत्वों की पहचान समय रहते नहीं हो सकती? क्या कड़ी जांच और सतर्कता से ऐसे मामलों को रोका नहीं जा सकता? यह मामला एक चेतावनी भी है कि अगर सुरक्षाकर्मी ही अपराधियों से जुड़ जाएं, तो न केवल कानून व्यवस्था को खतरा होता है, बल्कि आम लोगों की सुरक्षा भी दांव पर लग जाती है।
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