आदिवासी अस्मिता पर वार: पट्टा विवाद में गरमाई मध्यप्रदेश की सियासत

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भोपाल, मध्यप्रदेश | मध्यप्रदेश में आदिवासियों के अधिकारों और जमीनों को लेकर राजनीतिक संग्राम तेज हो गया है। कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने राज्य सरकार पर आदिवासी विरोधी रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस में जमकर निशाना साधा। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव और कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य कमलेश्वर पटेल ने एक सुर में सरकार पर हमला बोला और चेतावनी दी कि यदि जल्द समाधान नहीं हुआ तो राज्य में व्यापक जन आंदोलन होगा।
“धर्म नहीं, हक चाहिए”: सिंघार का तीखा हमला
उमंग सिंघार ने राज्य सरकार की नीतियों को आदिवासी विरोधी बताते हुए कहा कि भाजपा और आरएसएस मिलकर आदिवासी क्षेत्रों में धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “हमारे आदिवासी भाई-बहन सदियों से प्रकृति की पूजा करते आए हैं – सूरज, वृक्ष, जल, पक्षी – ये उनकी आस्था के केंद्र रहे हैं। लेकिन सरकार इन क्षेत्रों में जबरन धार्मिक एजेंडा थोपने का प्रयास कर रही है।” उन्होंने आगे कहा कि सरकार विकास के मुद्दों से भटकाकर धर्म की राजनीति कर रही है। “यहां जरूरत है शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की, लेकिन सरकार जमीनों की लूट और जनजातीय अस्मिता के खात्मे में लगी है,” सिंघार ने जोड़ा।
नेपानगर बना संघर्ष का केंद्रबिंदु
उमंग सिंघार ने नेपानगर का जिक्र करते हुए खुलासा किया कि वहां 8,000 से अधिक पट्टे बिना किसी पूर्व सूचना के खारिज कर दिए गए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि वन विभाग के कुछ अधिकारी रिश्वत लेकर अवैध रूप से जंगल कटवा रहे हैं और आरोप आदिवासियों पर मढ़ा जा रहा है। “40 वर्षों से जिन लोगों ने जमीनों को संवारकर जीवन यापन किया है, उनसे पट्टे छीनना अन्याय है। न कोई नोटिस, न सुनवाई, सीधे कब्जा हटाया जा रहा है। क्या यही है जनकल्याण की नीति?” उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि 15 दिनों में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई तो नेपानगर से जनज्वार उठेगा।
“छीन लिया इतिहास, रोशनी नहीं दी भविष्य की”: अरुण यादव
पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने कहा कि आदिवासियों के वर्षों पुराने पट्टे, जो उन्हें उनके पूर्वजों से मिले थे, अब सरकार की कलम की एक लकीर से खत्म किए जा रहे हैं। “जिन जमीनों पर तीन पीढ़ियों ने जीवन बिताया, वे आज गैरकानूनी घोषित हो गईं हैं,” उन्होंने भावुक लहजे में कहा। उन्होंने यह भी बताया कि लगभग साढ़े छह लाख से अधिक आवेदन आज भी विभिन्न कार्यालयों में धूल फांक रहे हैं। “सरकार की नीयत साफ होती तो वह इन आवेदनों को प्राथमिकता देती। लेकिन यहां तो आदिवासियों की आवाज़ को कुचला जा रहा है।”
कमलेश्वर पटेल: “पेसा एक्ट की खुली अवहेलना”
सीडब्ल्यूसी सदस्य कमलेश्वर पटेल ने आदिवासी समाज के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की मांग करते हुए कहा कि ग्राम सभा की अनुमति के बिना किसी भी तरह की भूमि कार्रवाई कानूनन अवैध है, लेकिन सरकार खुद नियमों को रौंद रही है। उन्होंने कहा कि पेसा एक्ट का खुला उल्लंघन हो रहा है और कई स्थानों पर ग्राम सभाओं को दरकिनार कर जमीनें किसी बड़े उद्योग समूह को सौंपने की तैयारी चल रही है। “यह सरकार कॉर्पोरेट की कठपुतली बन गई है। जल, जंगल और जमीन – आदिवासी जीवन की रीढ़ – पर हमला किया जा रहा है।”
सियासी रणनीति या जनविरोध?
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह मुद्दा अब सिर्फ आदिवासियों तक सीमित नहीं रह गया है। जिस तरह से पट्टों को निरस्त किया गया और फसलों को ट्रैक्टर से रौंदा गया, उससे ग्रामीण जनमानस में असंतोष की लहर फैल गई है। कांग्रेस अब इसे आगामी चुनावों में एक प्रमुख मुद्दा बनाने की तैयारी में है। सवाल यह है कि क्या सरकार इस दबाव में झुकेगी या फिर यह संघर्ष एक व्यापक जनांदोलन का रूप लेगा?
आदिवासी अस्तित्व की लड़ाई
यह मामला अब केवल कागजों पर दर्ज पट्टों का नहीं रहा। यह लड़ाई उस पहचान की है जिसे आदिवासी समाज सदियों से संजोता आया है। यह संघर्ष है ज़मीन से जुड़ी जड़ों की, अपने अधिकारों की, और उस विश्वास की जिसे लोकतंत्र पर आजमाया गया था। अगर सरकार समय रहते इस संवेदनशील मुद्दे पर संज्ञान नहीं लेती, तो यह चिंगारी मध्यप्रदेश की सियासी फिज़ा में एक बड़ा विस्फोट ला सकती है।[ad_2]