एक्सिओम-4 मिशन की ऐतिहासिक वापसी: ग्रुप कैप्टन शुभांशु ने रचा नया इतिहास

41 साल बाद अंतरिक्ष में पहुंचे भारतीय ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला एक्सिओम-4 मिशन के तहत 20 दिन बाद धरती पर लौटे। ड्रैगन कैप्सूल ने कैलिफोर्निया तट पर स्प्लैशडाउन किया। पीएम मोदी ने इसे गगनयान मिशन की दिशा में ऐतिहासिक कदम बताया और देशवासियों को इस गौरवशाली पल पर बधाई दी।

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41 साल बाद फिर एक भारतीय ने अंतरिक्ष से रचा इतिहास
“अंतरिक्ष से लौटे भारत के बेटे शुभांशु शुक्ला, एक्सिओम-4 मिशन में रचा नया इतिहास, पीएम मोदी ने कहा- यह गगनयान की दिशा में एक महाशक्ति की उड़ान है!”

41 साल बाद भारत की अंतरिक्ष विरासत को आगे बढ़ाते हुए ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से लौटकर एक नया अध्याय रच दिया है। एक्सिओम-4 मिशन का हिस्सा रहे शुभांशु ने तीन अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष यात्रियों के साथ 15 जुलाई की दोपहर सफलतापूर्वक पृथ्वी पर लैंडिंग की। स्पेसएक्स के ड्रैगन यान ‘ग्रेस’ ने कैलिफोर्निया के सैन डिएगो तट के पास प्रशांत महासागर में सुरक्षित स्प्लैशडाउन किया।

20 दिनों की अंतरिक्ष यात्रा, 22 घंटे का सांस रोक देने वाला वापसी मिशन
14 जुलाई की दोपहर शुभांशु शुक्ला और उनके साथियों ने ISS के हार्मनी मॉड्यूल से विदाई ली। शाम 4:45 बजे उनका ड्रैगन यान पृथ्वी की ओर रवाना हुआ और अगले 22.5 घंटे की लंबी यात्रा के बाद 27,000 किमी/घंटे की रफ्तार से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया। तापमान 1600°C तक पहुंचा, लेकिन स्पेसएक्स की शानदार टेक्नोलॉजी और अंतरिक्ष यात्रियों की सूझबूझ से सब कुछ नियंत्रण में रहा।

अंतरिक्ष से लौटे भारत के ‘गगनवीर’, पीएम मोदी ने जताया गर्व
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुभांशु शुक्ला की वापसी पर देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा, “शुभांशु का समर्पण, साहस और वैज्ञानिक सोच आने वाले गगनयान मिशन के लिए प्रेरणा है। उन्होंने भारतीय तिरंगे को एक बार फिर अंतरिक्ष में लहराकर करोड़ों युवाओं को नई ऊर्जा दी है।”

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क्यों होती है रात में और पानी में लैंडिंग?
रात का समय क्यों: रात के वक्त वायुमंडलीय अस्थिरता कम होती है, जिससे स्पेसक्राफ्ट का दोबारा प्रवेश (re-entry) ज्यादा स्थिर और सुरक्षित होता है।

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पानी में क्यों: समुद्र एक प्राकृतिक कुशन जैसा काम करता है, जिससे यान को सॉफ्ट लैंडिंग मिलती है। अगर लैंडिंग ज़ोन से थोड़ा भटकाव भी हो, तब भी जान-माल का कोई नुकसान नहीं होता।

मिशन का सफर: अंतरिक्ष में विज्ञान, परीक्षण और जीवन का अध्ययन
मिशन की शुरुआत 25 जून को हुई जब चारों अंतरिक्ष यात्री फाल्कन-9 रॉकेट में सवार होकर केनेडी स्पेस सेंटर से रवाना हुए। अगले दिन ISS पर पहुंचकर 20 दिनों तक उन्होंने विज्ञान से लेकर तकनीक तक कई महत्वपूर्ण प्रयोग किए। वहां उन्होंने microgravity environment में जीवन, जैविक और तकनीकी अनुसंधान किए, जो भविष्य के मानव मिशनों के लिए अहम साबित होंगे।

कौन थे मिशन के अन्य अंतरिक्ष यात्री?

  1. कमांडर पैगी व्हिट्सन – अमेरिका की अनुभवी अंतरिक्ष यात्री
  2. स्लावोज उज्नान्स्की-विस्नीव्स्की – पोलैंड से
  3. टिबोर कापू – हंगरी से

तीनों अंतरिक्ष यात्री भी शुभांशु के साथ ड्रैगन कैप्सूल ‘ग्रेस’ में सुरक्षित पृथ्वी पर लौटे।

शुभांशु: 21वीं सदी के भारत का अंतरिक्ष योद्धा
शुभांशु शुक्ला भारतीय वायुसेना में ग्रुप कैप्टन हैं और एक ट्रेंड टेस्ट पायलट भी। उन्होंने अंतरिक्ष में भारत की ओर से निजी भागीदारी के तहत एक नई शुरुआत की। इससे पहले 1984 में राकेश शर्मा ने सोवियत मिशन के जरिए अंतरिक्ष की यात्रा की थी। शुभांशु की यह उड़ान भारत के लिए एक नए युग की शुरुआत है – जहां भारत सिर्फ यात्रियों को नहीं भेजता, बल्कि अंतरिक्ष रणनीति में नेतृत्व करता है।अब शुभांशु शुक्ला और उनकी टीम का 7 दिनों का मेडिकल रिहैब प्रोग्राम चलेगा, ताकि वे दोबारा पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में खुद को ढाल सकें। इस दौरान उनकी शारीरिक क्षमता, मानसिक स्थिति और जैविक संतुलन पर वैज्ञानिक अध्ययन होगा।

भविष्य की उड़ान: गगनयान की ओर
यह मिशन न सिर्फ भारत की निजी स्पेस टेक्नोलॉजी भागीदारी का उदाहरण है, बल्कि 2025-26 में प्रस्तावित गगनयान मिशन के लिए भी एक महत्वपूर्ण नींव है। शुभांशु की सफलता से अब देश की नजर अपने स्वदेशी मानव मिशन पर है, जहां भारतीय अंतरिक्ष यात्री पूरी तरह ‘भारतीय टेक्नोलॉजी’ से अंतरिक्ष में जाएंगे।


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