राजस्थान में राजनीतिक भूचाल: दो विधायकों को कोर्ट से एक साल की सज़ा

स्टोरी हाइलाइट्स
  • 12 साल पुराना आंदोलन बना सज़ा की वजह: दो कांग्रेस विधायक दोषी करार
  • सड़क जाम से सज़ा तक: कांग्रेस नेताओं को 12 साल पुराने केस में मिली सजा

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राजस्थान की राजनीति में बुधवार का दिन एक झटका लेकर आया, जब कांग्रेस के दो मौजूदा विधायकों को कोर्ट ने एक वर्ष की सजा सुनाई। यह फैसला 12 साल पुराने एक आंदोलन से जुड़ा है, जो अब इन जनप्रतिनिधियों के लिए कानूनी मुश्किलों का कारण बन गया है। जयपुर की एसीजेएम-19 कोर्ट ने लाडनूं से विधायक मुकेश भाकर और शाहपुरा से विधायक मनीष यादव को वर्ष 2013 में किए गए एक सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन के मामले में दोषी करार देते हुए एक-एक साल की सजा सुनाई है। यह मामला तब का है जब ये नेता छात्र राजनीति से जुड़े थे और राजस्थान यूनिवर्सिटी के मुख्य द्वार पर एक प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे।

 क्या था मामला?
साल 2013 में राजस्थान विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर छात्रों और युवा नेताओं द्वारा सड़क पर बैठकर यातायात अवरुद्ध किया गया था। इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व तत्कालीन छात्र नेताओं – जिनमें मुकेश भाकर, मनीष यादव और अभिषेक चौधरी शामिल थे – ने किया था। यह प्रदर्शन विश्वविद्यालय में भर्ती, फीस और अन्य छात्र मुद्दों को लेकर किया गया था। लेकिन, इस दौरान सड़क पर बैठकर जन यातायात को अवरुद्ध करने की वजह से आम नागरिकों को काफी परेशानी उठानी पड़ी।

 कानूनी कार्यवाही और कोर्ट का फैसला
घटना के समय पुलिस द्वारा आईपीसी की धारा 143 (गैरकानूनी जमावड़ा), 283 (सार्वजनिक मार्ग में बाधा), और अन्य धाराओं में मामला दर्ज किया गया था। कोर्ट ने इस मामले की विस्तृत सुनवाई के बाद कुल 9 लोगों को दोषी माना, जिनमें कांग्रेस के दो मौजूदा विधायक भी शामिल हैं। कोर्ट ने माना कि इन नेताओं ने न केवल कानून का उल्लंघन किया, बल्कि जन जीवन में अवरोध उत्पन्न करके आम जनता के अधिकारों का भी हनन किया। इस आधार पर दोनों विधायकों को एक-एक साल की साधारण सजा और जुर्माना लगाया गया।

 कौन-कौन हैं दोषी?
इस केस में दोषी पाए गए अन्य लोगों में झोटवाड़ा से कांग्रेस के पूर्व प्रत्याशी अभिषेक चौधरी भी शामिल हैं, जो उस समय प्रदर्शन में सक्रिय भूमिका में थे। अन्य 6 लोगों के नाम भी सूची में हैं, जो छात्र राजनीति या कांग्रेस के युवा संगठनों से जुड़े बताए जाते हैं।

 क्या विधायक पद पर असर पड़ेगा?
फिलहाल अदालत ने इस फैसले के खिलाफ अपील का रास्ता खुला रखा है। अगर ऊपरी अदालत से राहत नहीं मिलती, तो जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत दोषी विधायक अयोग्य घोषित किए जा सकते हैं। हालांकि, इस पर अंतिम निर्णय न्यायालय की अंतिम व्यवस्था और विधानसभा सचिवालय की प्रक्रिया पर निर्भर करेगा। फैसले के बाद कांग्रेस खेमे में हलचल तेज हो गई है। पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता ने इसे राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित कार्रवाई बताया, वहीं भाजपा नेताओं ने इसे कानून का पालन न करने वालों के लिए चेतावनी बताया। कुछ सामाजिक संगठनों ने भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जनप्रतिनिधियों को कानून का पालन करने की मिसाल पेश करनी चाहिए।

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 विधायकों की प्रतिक्रिया
फैसले के बाद विधायक मुकेश भाकर ने मीडिया से बात करते हुए कहा –
“यह फैसला हम पर थोपा गया है। हमने हमेशा छात्रहित में आवाज़ उठाई है और शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन किया था। हम उच्च न्यायालय में अपील करेंगे।” वहीं, विधायक मनीष यादव ने भी कहा कि वे न्यायपालिका में पूर्ण विश्वास रखते हैं, लेकिन इस फैसले को चुनौती देंगे।राजनीति और कानून के टकराव की इस घटना ने एक बार फिर यह संदेश दिया है कि जनआंदोलनों में भागीदारी भी कानूनी जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं करती। वर्षों पुराने आंदोलन की यादें आज कानूनी दंड के रूप में सामने आई हैं, जो आने वाले समय में राजस्थान की राजनीति में कई समीकरण बदल सकती हैं।

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