मोदक नहीं, यह है भगवान गणेश के हृदय का अंश – जानिए पौराणिक कथा

हिंदू धर्म में भगवान गणेश को ‘प्रथम पूज्य’ माना गया है—हर शुभ कार्य की शुरुआत उन्हीं के स्मरण से होती है। लेकिन यदि आप गौर करें तो हर पूजा-पाठ में, विशेषकर गणेश चतुर्थी पर, एक मिठाई जो सबसे ज़्यादा दिखाई देती है, वह है मोदक। आखिर क्यों? क्या यह केवल एक परंपरा है, या इसके पीछे कोई दिव्य संदेश छिपा है?
इस सवाल का उत्तर आपको एक ऐसी कथा में मिलेगा, जो केवल पौराणिक नहीं, बल्कि गहराई से भावनात्मक और आध्यात्मिक भी है।
जब स्वर्ण थाल में परोसे गए हजारों व्यंजन
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार समस्त देवताओं ने भगवान गणेश का सम्मान करने का निश्चय किया। उन्होंने उन्हें ‘विद्या, विवेक और वैभव’ का प्रतीक मानते हुए, एक स्वर्ण थाली में हजारों प्रकार के व्यंजन परोसे। वहाँ खीर से लेकर खीरान्न, पंचामृत से लेकर पकवानों की भरमार थी। सभी देवी-देवता यह देखने को उत्सुक थे कि गणेश जी सबसे पहले क्या ग्रहण करेंगे। लेकिन आश्चर्य तब हुआ जब गणेश जी ने उन हजारों पकवानों में से केवल एक चीज को हाथ लगाया—मोदक।
पार्वती माता का रहस्योद्घाटन
देवताओं की यह उत्सुकता अब प्रश्न में बदल गई—आख़िर सिर्फ मोदक ही क्यों? तब माता पार्वती मुस्कुराईं और कहा: “मोदक केवल एक मिठाई नहीं है। यह श्रद्धा, प्रेम और आत्मज्ञान का प्रतीक है। इसमें वह मिठास है जो भक्ति में होती है, वह गूढ़ता है जो ज्ञान में होती है, और वह समर्पण है जो माँ के प्रेम में होती है।” यह उत्तर सुनकर सभी देवता नतमस्तक हो गए।
जब गणेश जी ने तीन बार ब्रह्मांड की परिक्रमा की
एक और कथा इस विशेष प्रेम का और गहरा स्पष्टीकरण देती है। एक दिन नारद मुनि भगवान शिव और माता पार्वती के पास एक दिव्य मोदक लेकर पहुँचे। उन्होंने कहा कि यह मोदक जिसे भी दिया जाएगा, वह ज्ञान, विवेक और अमरता प्राप्त करेगा। लेकिन प्रश्न यह उठा कि यह दिव्य मोदक किसे दिया जाए—कार्तिकेय को या गणेश को? शिव-पार्वती ने दोनों पुत्रों की परीक्षा लेने का निर्णय किया। उन्होंने कहा, “जो भी संपूर्ण ब्रह्मांड की सबसे तेज़ परिक्रमा करेगा, उसे यह मोदक मिलेगा।” कार्तिकेय अपने वाहन मयूर पर सवार होकर उड़ चले। वहीं गणेश जी ने तीन बार अपने माता-पिता की परिक्रमा कर ली और कहा: “मेरे लिए आप दोनों ही संपूर्ण ब्रह्मांड हैं।” यह उत्तर सुनकर शिव और पार्वती भावविभोर हो गए और उन्होंने वह दिव्य मोदक गणेश जी को अर्पित किया। यही वह क्षण था जब मोदक केवल स्वाद की वस्तु नहीं, ज्ञान, अमरता और विवेक का प्रतीक बन गया।
मोदक का अर्पण: श्रद्धा का साक्षात रूप
कहा जाता है कि गणेश जी ने माता पार्वती से एक बार कहा था: “जो भी मुझे सच्चे मन और श्रद्धा से मोदक या लड्डू अर्पित करेगा, उसके जीवन में संतुलन, समृद्धि और समझ का कभी अभाव नहीं होगा।” यही कारण है कि आज भी जब किसी के जीवन में कोई नई शुरुआत होती है, तो सबसे पहले गणेश जी को मोदक चढ़ाया जाता है—चाहे नया व्यापार हो, शादी हो, परीक्षा या घर प्रवेश।
मोदक नहीं, यह है समर्पण का प्रतीक
जब हम गणेश जी को मोदक अर्पित करते हैं, तो हम उन्हें केवल एक मिठाई नहीं दे रहे होते। हम उन्हें अपना सच्चा प्रेम, गहरी श्रद्धा और आत्मज्ञान की कामना अर्पित कर रहे होते हैं। यह एक विनम्र निवेदन होता है कि, हे गणपति बप्पा, हमारे जीवन में भी वही संतुलन और विवेक बनाए रखिए, जो आपके अंदर है।
अंत में…
गणेश जी और मोदक का रिश्ता सिर्फ भूख या स्वाद का नहीं, यह आत्मा और विश्वास का रिश्ता है। यह उस आदर्श भक्ति का प्रतीक है जिसमें स्वाद से अधिक भावना होती है, और मिठास से अधिक समर्पण। इसलिए अगली बार जब आप गणेश जी को मोदक चढ़ाएं, तो याद रखें—आप उन्हें केवल प्रसाद नहीं, बल्कि अपने हृदय का सर्वोत्तम अर्पण कर रहे हैं।