अयोध्या में रामलला का दिव्य श्रृंगार: हर दिन का एक नया स्वरूप

ram lalla ayodhya अयोध्या में रामलला का दिव्य श्रृंगार: हर दिन का एक नया स्वरूप
अयोध्या —राम नगरी अयोध्या में विराजमान संपूर्ण सृष्टि के स्वामी, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामलला की सेवा और पूजा में दिव्यता, श्रद्धा और परंपरा का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। रामलला का प्रतिदिन भव्य श्रृंगार होता है, जो न केवल धार्मिक आस्था को साकार करता है, बल्कि सनातन संस्कृति की जीवंत झलक भी प्रस्तुत करता है।

 प्रभु को जगाने से शुरू होती है दिनचर्या
प्रातः काल की शुभ बेला में जब सूरज की पहली किरणें अयोध्या के आसमान को छूती हैं, तभी श्री रामलला की दिनचर्या आरंभ होती है। सुबह 6:30 बजे सबसे पहले प्रभु श्रीराम को जगाया जाता है, जिसे ‘मंगला सेवा’ कहा जाता है। इसके बाद शास्त्रोक्त विधियों से उनका स्नान, तिलक, वस्त्र-परिधान और पुष्प सज्जा की जाती है।

 वस्त्र विन्यास: ऋतु अनुसार प्रभु की पोशाक
हर मौसम के अनुसार श्री रामलला के वस्त्रों में बदलाव किया जाता है। गर्मियों में हल्के सूती और मुलायम वस्त्र पहने जाते हैं, जो शीतलता प्रदान करते हैं। वहीं सर्दियों में ऊनी पोशाकें, रेशमी अंगवस्त्र और कभी-कभी रंगीन स्वेटर भी पहनाए जाते हैं। उनकी पोशाकों का रंग और डिज़ाइन भी विशेष रूप से तैयार किया जाता है, जो दिन के अनुसार भिन्न होता है।

 फूलों की माला दिल्ली से मंगाई जाती है
रामलला के श्रृंगार में फूलों की विशेष भूमिका होती है। प्रतिदिन दिल्ली से विशेष रूप से ताजे और सुगंधित फूलों की मालाएं मंगवाई जाती हैं, जो श्रीराम के भव्य श्रृंगार का हिस्सा बनती हैं। फूलों की सजावट में गुलाब, चमेली, गेंदा, रजनीगंधा और बेला प्रमुख रूप से शामिल होते हैं।

आरती और पूजा का अनुशासित क्रम
रामलला की पूजा विधि अत्यंत अनुशासित और परंपरागत है। सुबह की मंगला आरती के बाद दोपहर 12 बजे ‘राज भोग आरती’ होती है, जिसमें प्रभु को विविध व्यंजन अर्पित किए जाते हैं। इसके पश्चात सायं 7:30 बजे ‘संध्या आरती’ होती है। संध्या आरती के तुरंत बाद रात 8:30 बजे शयन आरती के साथ रामलला को विश्राम दिया जाता है। आरती के समय मंदिर में शंख, घंटा और भक्तों की जयकारों से पूरा वातावरण गूंज उठता है।

Advertisement

 भोग की परंपरा: स्वाद और श्रद्धा का समागम
रामलला को दिन में चार बार भोग अर्पित किया जाता है। प्रत्येक भोग विशिष्ट समय और तिथि के अनुसार तैयार किया जाता है। सुबह बाल भोग के रूप में फल, दूध, मखाने आदि अर्पित किए जाते हैं। दोपहर में विशेष राजभोग में खीर, पूरी, चने, सब्ज़ी, मिठाई आदि शामिल होती है। संध्या और रात्रि भोग में हल्के व्यंजन जैसे खिचड़ी, फलाहार या पंचामृत परोसे जाते हैं। इन व्यंजनों को विशेष रूप से राममंदिर परिसर में स्थित रसोई में तैयार किया जाता है, जहाँ स्वच्छता और श्रद्धा का विशेष ध्यान रखा जाता है। भक्तों का विश्वास है कि प्रभु का भोग प्रसाद बनने के बाद आत्मिक शुद्धि का माध्यम बनता है।

Advertisement

 विशेष श्रृंगार तिथि: आषाढ़ कृष्ण अष्टमी
विक्रम संवत 2082 के आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि, जो 19 जून 2025 को पड़ी, इस दिन रामलला का विशेष अलौकिक श्रृंगार किया गया। तीर्थ क्षेत्र अयोध्या धाम में यह दिन अत्यंत शुभ और पावन माना गया। इस दिन प्रभु को पीतांबर वस्त्र, स्वर्णाभूषणों से अलंकृत कर श्रृंगारित किया गया और फूलों की विशेष सज्जा की गई। श्रृंगार दर्शन के लिए सुबह से ही भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। मंदिर परिसर में कीर्तन, भजन और घंटों तक रामधुन की गूंज रही। इस दिन का श्रृंगार भक्तों के लिए दिव्य अनुभूति से कम नहीं था।

 आस्था और आयोजन का अद्वितीय संगम
रामलला की यह दैनिक सेवा और श्रृंगार सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि करोड़ों श्रद्धालुओं की भावना का प्रतीक है। अयोध्या में हो रहे ये आयोजन यह सिद्ध करते हैं कि सनातन परंपराएं आज भी कितनी जीवंत और लोकमानस में कितनी गहराई से रची-बसी हैं।

यह अलौकिक दिनचर्या श्रद्धा, संयम, भक्ति और भारतीय संस्कृति की नींव को पुष्ट करती है। रामलला के दर्शन और श्रृंगार की यह परंपरा भावनाओं को एक नई ऊंचाई पर ले जाती है, जहाँ भक्ति, सौंदर्य और संस्कृति एकाकार हो जाते हैं।


रहें हर खबर से अपडेट आशा न्यूज़ के साथ

रहें हर खबर से अपडेट आशा न्यूज़ के साथ

और पढ़े
Advertisement
Advertisement
Back to top button
error: