पटना में अपराधियों का राज: दिन के उजाले में मौत का तांडव, पुलिस बनी तमाशबीन
पटना में अपराधियों का तांडव जारी है। जनवरी से जुलाई तक 140 से ज्यादा हत्याएं हो चुकी हैं, लेकिन पुलिस अब भी खाली हाथ है। दिनदहाड़े हो रही इन हत्याओं ने राजधानी को दहशतगर्दी का गढ़ बना दिया है। जनता अब सुरक्षा नहीं, जवाब मांग रही है।

बिहार की राजधानी पटना की सड़कों पर अब कानून नहीं, अपराधियों की दहशत का साया मंडरा रहा है। दिन के उजाले में, लोगों की आंखों के सामने, बाजार से लेकर घर की चौखट तक गोलियों की तड़तड़ाहट सुनाई देती है। वो शहर जो कभी ज्ञान और राजनीति का गढ़ माना जाता था, आज वह गोलियों के साए में सहमा हुआ है। जनवरी से जुलाई तक की तस्वीर भयावह है—140 से ज्यादा हत्याएं, दर्जनों परिवार उजड़ चुके हैं, लेकिन पुलिस की पकड़ अब भी नाकाम साबित हो रही है। सवाल यह है कि आखिर कब तक पटना का आम नागरिक अपनी जान को हथेली पर रखकर जिएगा?
‘एक्शन मोड’ सिर्फ पोस्टरों में, ज़मीन पर हत्याओं की बाढ़
बिहार पुलिस भले ही ‘एक्शन मोड’ में होने का दावा करती हो, लेकिन हकीकत यह है कि अपराधियों का मनोबल पहले से कहीं ज्यादा बढ़ चुका है। ताजा आंकड़ों पर नजर डालें तो जनवरी से मई के बीच 116 हत्याएं दर्ज की गईं, वहीं जून में 25 और जुलाई के शुरुआती 13 दिनों में 11 लोगों की हत्या कर दी गई। यह आंकड़े नहीं, बल्कि पुलिसिया व्यवस्था की खामियों का आईना हैं। हर मर्डर के बाद वही पुराना रिवाज़ – खोखा उठाना, सीसीटीवी खंगालना, एफएसएल टीम बुलाना और फिर वही सन्नाटा।
पुलिस की पकड़ कमजोर, अपराधियों के हौसले मजबूत
यह जानना बेहद चिंताजनक है कि इन हत्याओं में से अधिकांश मामलों में पुलिस अब तक अपराधियों को गिरफ्तार नहीं कर पाई है। ना कोई ठोस सुराग, ना कोई रणनीतिक कार्रवाई – मानो पुलिस अपराध निवारण नहीं बल्कि सिर्फ रूटीन जांच की खानापूर्ति कर रही है।
जुलाई की हत्या लिस्ट: मौत की तारीखें
- 4 जुलाई: गांधी मैदान इलाके में व्यवसायी गोपाल खेमका की घर के बाहर गोली मारकर हत्या
- 6 जुलाई: सगुना मोड़ पर स्कूल संचालक की गोली मारकर हत्या
- 10 जुलाई: रानी तालाब में बालू माफिया रमाकांत यादव की हत्या
- 11 जुलाई: रामकृष्ण नगर में दुकानदार विक्रम झा की दुकान पर हत्या
- 12 जुलाई: पशु चिकित्सक सुरेंद्र केवट की कुमकुम इलाके में हत्या
- 13 जुलाई: सुल्तानगंज में चाय की दुकान पर वकील जितेंद्र महतो की गोली मारकर हत्या
इन हत्याओं में एक पैटर्न साफ दिखाई देता है – अपराधी बेखौफ हैं, उन्हें पुलिस की मौजूदगी या प्रतिक्रिया की कोई परवाह नहीं।
जनता का भरोसा टूटा, पुलिस को खुद पर करना होगा पुनः विश्वास कायम
पटना में अब आलम यह हो गया है कि जनता पुलिस पर भरोसा करने के बजाय अपने तरीकों से सुरक्षा सुनिश्चित करने में लगी है। बाजारों में निजी गार्ड बढ़ रहे हैं, कॉलोनियों में रात्रि गश्त की व्यवस्था आम होती जा रही है, और लोग दिन ढलते ही घरों में सिमटने लगे हैं।
क्या चाहिए पटना को: नई रणनीति या नई सोच?
बिहार पुलिस के लिए अब वक्त है एक बड़े आत्ममंथन का। सवाल यह नहीं कि कितनी गश्त की गई, सवाल यह है कि कितनी हत्याएं रोकी गईं। अपराधियों में खौफ तब आएगा जब वे पकड़े जाएंगे, सजा पाएंगे और न्याय त्वरित होगा। पटना की जनता अब जवाब चाहती है – क्या उन्हें सुरक्षित शहर मिलेगा या डर के साये में जीने की आदत डालनी होगी?