तेल की कीमतों में 75% उछाल संभव! इस्राइल-ईरान विवाद पर जेपी मॉर्गन की बड़ी चेतावनी
इस्राइल-ईरान के बीच बढ़ते तनाव के चलते जेपी मॉर्गन ने चेतावनी दी है कि होर्मुज जलडमरूमध्य में तेल आवागमन बाधित हो सकता है, जिससे कीमतें $120–$130 तक पहुंच सकती हैं। हालांकि बैंक का मानना है कि राजनयिक संतुलन कायम रहा तो 2026 तक कीमतें $60–$67 पर स्थिर रह सकती हैं।

जैसे-जैसे मध्य पूर्व में गरमाती है जंग की आंच, दुनिया को झटका दे सकती हैं तेल की कीमतें: जेपी मॉर्गन की बड़ी चेतावनी
मध्य पूर्व के दो प्रमुख देशों—इस्राइल और ईरान—के बीच बढ़ती तनातनी वैश्विक बाजारों पर गंभीर असर डाल सकती है। हाल के दिनों में जिस तरह से अमेरिकी सैन्य कार्रवाई और खाड़ी क्षेत्र में तनाव बढ़ा है, वैश्विक तेल बाजार एक और बड़े संकट के मुहाने पर आ खड़ा हुआ है। जेपी मॉर्गन जैसी प्रतिष्ठित वैश्विक वित्तीय संस्था ने चेतावनी दी है कि यदि हालात बिगड़े, तो दुनिया को “कच्चे तेल की कीमतों में विस्फोटक बढ़ोतरी” का सामना करना पड़ सकता है। हो सकता है कि तेल की कीमतें $120 से $130 प्रति बैरल तक पहुंच जाएं—यानी मौजूदा कीमतों से लगभग 75% की उछाल। बैंक के विश्लेषकों का मानना है कि इस संकट का सबसे बड़ा असर होर्मुज जलडमरूमध्य पर पड़ेगा, जो दुनिया के सबसे अहम तेल शिपिंग रास्तों में से एक है। यदि यह मार्ग अवरुद्ध होता है या उस पर खतरा मंडराता है, तो तेल आपूर्ति की चेन टूट सकती है। इसका सीधा असर वैश्विक बाजारों और उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ेगा।
क्या तेल की कीमतों में भूचाल तय है?
जेपी मॉर्गन के अनुसार, अभी के लिए यह केवल एक संभावित खतरा है, कोई तयशुदा भविष्य नहीं। बैंक का आकलन है कि यदि राजनयिक रास्तों से तनाव नियंत्रित होता है और ऊर्जा आपूर्ति बहाल रहती है, तो 2026 तक कीमतें $60–$67 प्रति बैरल के बीच स्थिर रह सकती हैं। वर्तमान में ब्रेंट क्रूड $76 और WTI $74 पर कारोबार कर रहा है—जो आर्थिक गतिविधियों के हिसाब से संतुलित माने जा रहे हैं।
राजनीतिक तनाव बनाम आर्थिक स्थिरता
इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति का प्रभाव केवल सीमाओं तक सीमित नहीं होता, वह आम आदमी की रोजमर्रा की जिंदगी पर भी असर डालता है। चाहे पेट्रोल हो, डीजल या फिर खाना पकाने का तेल—इनकी कीमतों में बढ़ोतरी का असर हर वर्ग तक पहुंचता है। जेपी मॉर्गन का यह अलर्ट न केवल निवेशकों के लिए चेतावनी है, बल्कि यह बताता है कि दुनिया किस हद तक ऊर्जा पर निर्भर हो चुकी है।