PNB बैंक गारंटी घोटाला: 183 करोड़ की धोखाधड़ी में सीनियर मैनेजर समेत दो गिरफ्तार, कोलकाता से इंदौर लाया गया गिरोह
पंजाब नेशनल बैंक (PNB) की फर्जी बैंक गारंटी से जुड़ा बड़ा घोटाला उजागर हुआ है। 183.21 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले में CBI ने PNB के सीनियर मैनेजर समेत दो लोगों को गिरफ्तार किया है। आरोपी इंदौर स्थित सिंचाई परियोजनाओं के ठेके पाने के लिए नकली गारंटी का इस्तेमाल कर रहे थे।

इंदौर/नई दिल्ली। देश की आर्थिक सुरक्षा व्यवस्था को गहरा झटका देते हुए एक बेहद चौंकाने वाला मामला उजागर हुआ है, जिसमें पंजाब नेशनल बैंक (PNB) के एक वरिष्ठ अधिकारी और कोलकाता के एक गिरोह द्वारा मिलकर करोड़ों रुपये की फर्जी बैंक गारंटी तैयार कर सरकारी परियोजनाओं में सेंध लगाई गई। केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने इस मामले में दो लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें एक PNB का वरिष्ठ प्रबंधक भी शामिल है। यह वित्तीय घोटाला इंदौर स्थित मध्य प्रदेश जल निगम लिमिटेड (MPJNL) की तीन बड़ी सिंचाई परियोजनाओं से जुड़ा हुआ है। आरोप है कि एक निजी कंपनी ने PNB द्वारा जारी बताई गई नकली बैंक गारंटी के बल पर यह ठेके हासिल किए।
कैसे हुआ खुलासा?
वर्ष 2023 में इंदौर की एक निर्माण कंपनी ने MPJNL के समक्ष कुल आठ बैंक गारंटी जमा कीं, जिनकी कुल अनुमानित वैल्यू 183.21 करोड़ रुपये थी। यह गारंटी PNB के नाम पर थी, और ईमेल के माध्यम से PNB के आधिकारिक डोमेन से इनके पुष्टि पत्र भी निगम को भेजे गए। MPJNL ने इस आधार पर कंपनी को करीब 974 लाख रुपये के सिंचाई परियोजनाओं के तीन बड़े ठेके आवंटित कर दिए। लेकिन जब इन गारंटियों की आगे सत्यापन प्रक्रिया शुरू हुई, तब संदेह के बाद जांच में सामने आया कि सभी गारंटी फर्जी थीं। इस घोटाले की गंभीरता को देखते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश पर CBI ने जांच अपने हाथ में ली। इसके तहत 19 और 20 जून को देश के पांच राज्यों — पश्चिम बंगाल, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश और दिल्ली — में एक साथ 23 स्थानों पर तलाशी अभियान चलाया गया। छापेमारी के दौरान कोलकाता से दो अहम आरोपियों की गिरफ्तारी हुई, जिनमें एक पंजाब नेशनल बैंक का वरिष्ठ प्रबंधक और दूसरा बैंकिंग से जुड़ा एक एजेंट बताया जा रहा है। दोनों आरोपियों को कोलकाता के एक स्थानीय कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें ट्रांजिट रिमांड पर इंदौर लाया गया है।
कोलकाता से फैला फर्जीवाड़े का नेटवर्क
CBI सूत्रों के अनुसार, प्रारंभिक जांच में इस पूरे फर्जीवाड़े के पीछे कोलकाता स्थित एक संगठित गिरोह का हाथ सामने आया है। यह गिरोह अलग-अलग राज्यों में सक्रिय रहकर सरकारी विभागों में ठेके हासिल करने के लिए नकली बैंक गारंटी तैयार करता है और बड़े कमीशन पर कंपनियों को बेचता है। इस तरह के गारंटी पत्र पूरी तरह से असली दिखते हैं और बैंक के अधिकृत ईमेल डोमेन से भेजे जाते हैं, जिससे संदेह की कोई गुंजाइश नहीं रहती। इस नेटवर्क के कई सदस्य तकनीकी तौर पर दक्ष हैं, जिनका मुख्य काम डिजिटल धोखाधड़ी को अंजाम देना है।
बैंकिंग सिस्टम की बड़ी चूक
इस मामले ने न केवल बैंकिंग प्रणाली की कमजोरियों को उजागर किया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि कैसे सार्वजनिक संस्थान बिना उचित जांच के करोड़ों के ठेके पास कर देते हैं। बैंक गारंटी की पुष्टि की प्रक्रिया में जिस तरह से नकली ईमेल ने असली जैसा धोखा दिया, वह साइबर धोखाधड़ी की एक नई चुनौती के रूप में सामने आया है। CBI अब यह भी जांच कर रही है कि क्या इस घोटाले में बैंक के अन्य अधिकारी भी शामिल थे या यह केवल एक व्यक्ति का व्यक्तिगत अपराध था।
आगे की कार्रवाई और संभावित गिरफ्तारियां
CBI ने यह संकेत दिया है कि आने वाले दिनों में और गिरफ्तारियां हो सकती हैं। बैंकिंग दस्तावेजों, कंपनी के रजिस्ट्रेशन और ईमेल कम्युनिकेशन की गहन जांच की जा रही है। इसके साथ ही, जिन अन्य राज्यों में गिरोह ने नकली गारंटी भेजी हैं, वहां की एजेंसियों को सतर्क कर दिया गया है। सूत्र बताते हैं कि इस गिरोह ने अब तक कई अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं में भी इसी तरह की धोखाधड़ी की है, जिसकी पूरी जानकारी जांच के बाद सामने आएगी। यह मामला एक बार फिर देश के सार्वजनिक संसाधनों की सुरक्षा और वित्तीय पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है। जहां एक तरफ सरकार डिजिटलीकरण और पारदर्शिता की बात कर रही है, वहीं दूसरी तरफ इस तरह की घटनाएं बता रही हैं कि सिस्टम के भीतर सुधार की कितनी जरूरत है। CBI की इस कार्रवाई से यह उम्मीद जागी है कि भविष्य में ऐसे गिरोहों की जड़ तक जाकर कानून उन पर नकेल कस सकेगा।