SIR के बहाने एनआरसी? ओवैसी बोले – आयोग को अधिकार किसने दिया? SIR को बताया ‘संवैधानिक उल्लंघन’

AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण को लेकर चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने इसे 'बैकडोर NRC' करार देते हुए आयोग को नागरिकता तय करने से जुड़े अधिकारों को चुनौती दी। ओवैसी ने सीमांचल के वोटरों को कमजोर करने की साजिश बताया।

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बिहार में ‘गुपचुप एनआरसी’? ओवैसी ने चुनाव आयोग पर बोला जोरदार हमला, सीमांचल को निशाना बनाने का आरोप

रिपोर्ट: आशा न्यूज ब्यूरो, हैदराबाद/पटना
आगामी विधानसभा चुनावों की सरगर्मी के बीच बिहार में एक नया सियासी तूफान खड़ा हो गया है। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं। ओवैसी का कहना है कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) की आड़ में NRC को पिछले दरवाजे से लाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने इसे संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण बताया है और कहा है कि आयोग को नागरिकता तय करने का कोई हक नहीं है।

“NRC का दूसरा रूप है SIR”, ओवैसी का दावा
असदुद्दीन ओवैसी ने सोमवार को एक प्रेस वार्ता के दौरान कहा – “चुनाव आयोग जिस तरह SIR चला रहा है, वह न केवल असंवैधानिक है, बल्कि यह सीमांचल जैसे मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों को लक्षित कर एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है।” उन्होंने यह भी पूछा कि आखिर चुनाव आयोग को किसने यह अधिकार दिया कि वह तय करे कि कोई भारतीय नागरिक है या नहीं? उन्होंने तीखा सवाल किया – “क्या ECI अब गृह मंत्रालय की जगह ले रहा है?” ओवैसी ने आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया के ज़रिए लोगों को डराया जा रहा है, खासकर सीमांचल के गरीब और मुस्लिम तबकों को। उनका कहना है कि इससे सामाजिक ताने-बाने पर असर पड़ेगा और राजनीतिक रूप से एक खास समूह को नुकसान पहुंचाने की तैयारी की जा रही है।

“सूत्रों” के हवाले से नहीं चलेगा लोकतंत्र: ओवैसी
ओवैसी ने इस बात पर नाराज़गी जताई कि चुनाव आयोग की ओर से स्पष्ट बयान सामने नहीं आ रहे हैं। उन्होंने कहा – “एक संवैधानिक संस्था को खुद सामने आकर स्थिति साफ करनी चाहिए, ना कि मीडिया में ‘सूत्रों’ के हवाले से खबरें लीक होनी चाहिए।” उन्होंने दो टूक कहा – “हमने सबसे पहले चेताया था कि यह प्रक्रिया ‘बैक डोर से एनआरसी’ लाने का प्रयास है। 2003 में ऐसा ही प्रयास हुआ था, लेकिन नतीजा क्या निकला? एक भी विदेशी नहीं मिला। फिर अब क्यों दोहराई जा रही है वही प्रक्रिया?”

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सीमांचल की राजनीति में हलचल
ओवैसी का इशारा बिहार के सीमांचल क्षेत्र की ओर था, जहां उनकी पार्टी AIMIM की मजबूत पकड़ है और जहां मुस्लिम आबादी निर्णायक भूमिका निभाती है। उन्होंने आशंका जताई कि SIR के नाम पर इन क्षेत्रों में मतदाताओं को डराकर उनके नाम हटाने की कोशिश की जा रही है ताकि आगामी चुनावों में परिणाम प्रभावित किए जा सकें। उन्होंने AIMIM के कार्यकर्ताओं से अपील की कि वे हर ब्लॉक लेवल ऑफिसर (BLO) से संपर्क कर यह सुनिश्चित करें कि कोई भी मतदाता सूची से बेवजह बाहर न किया जाए।

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ECI का डेटा, SIR की प्रगति
चुनाव आयोग के अनुसार, SIR के तहत बिहार में अब तक 6.6 करोड़ यानी 83.66% मतदाताओं के Enumeration Forms जमा हो चुके हैं। BLO द्वारा दो चरणों में घर-घर जाकर यह अभियान चलाया गया। आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया मतदाता सूची को अधिक पारदर्शी और त्रुटिरहित बनाने के लिए की जा रही है।

सुप्रीम कोर्ट की राय: दस्तावेज हों स्वीकार्य
10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को SIR जारी रखने की अनुमति दे दी थी। कोर्ट ने यह भी सलाह दी थी कि आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर आईडी जैसे पहचान पत्रों को वैध दस्तावेज माना जाए। यह निर्देश इसलिए अहम है क्योंकि कई लोग पहचान संबंधी दस्तावेजों की कमी के कारण प्रक्रिया से बाहर हो सकते हैं। जहां चुनाव आयोग SIR को जरूरी प्रक्रिया बता रहा है, वहीं विपक्ष और खासकर AIMIM इसे राजनीतिक साजिश करार दे रहा है। NDA और INDIA गठबंधन के बीच इस साल के अंत तक होने वाले मुकाबले से पहले यह मुद्दा अब और गर्माने वाला है।

 सवालों के घेरे में आयोग की भूमिका
ओवैसी की आलोचना से साफ है कि बिहार की राजनीति में SIR एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। क्या यह सचमुच लोकतंत्र को मज़बूत करने की पहल है या किसी खास वर्ग को कमजोर करने का प्रयास? यह सवाल अब मतदाताओं और न्यायपालिका दोनों के सामने है।


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